श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्।।1.27।।
tān samīkṣhya sa kaunteyaḥ sarvān bandhūn avasthitān kṛipayā parayāviṣhṭo viṣhīdann idam abravīt
।।1.27।। अपनी-अपनी जगह पर स्थित उन सम्पूर्ण बान्धवों को देखकर वे कुन्तीनन्दन अर्जुन अत्यन्त कायरता से युक्त होकर विषाद करते हुए ये वचन बोले।
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