मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।7.7।।
mattaḥ parataraṁ nānyat kiñchid asti dhanañjaya mayi sarvam idaṁ protaṁ sūtre maṇi-gaṇā iva
।।7.7।। हे धनञ्जय ! मेरे बढ़कर (इस जगत् का) दूसरा कोई किञ्चिन्मात्र भी कारण नहीं है। जैसे सूतकी मणियाँ सूतके धागेमें पिरोयी हुई होती हैं, ऐसे ही यह सम्पूर्ण जगत् मेरेमें ही ओत-प्रोत है।
Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण