तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्ितर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।।7.17।।
teṣhāṁ jñānī nitya-yukta eka-bhaktir viśhiṣhyate priyo hi jñānino ’tyartham ahaṁ sa cha mama priyaḥ
।।7.17।। उन चार भक्तोंमें मेरेमें निरन्तर लगा हुआ, अनन्यभक्तिवाला ज्ञानी अर्थात् प्रेमी भक्त श्रेष्ठ है; क्योंकि ज्ञानी भक्तको मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह भी मेरेको अत्यन्त प्रिय है।
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