स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान् हि तान्।।7.22।।
sa tayā śhraddhayā yuktas tasyārādhanam īhate labhate cha tataḥ kāmān mayaiva vihitān hi tān
।।7.22।। उस (मेरे द्वारा दृढ़ की हुई) श्रद्धासे युक्त होकर वह मनुष्य (सकामभावपूर्वक) उस देवताकी उपासना करता है और उसकी वह कामना पूरी भी होती है; परन्तु वह कामना-पूर्ति मेरे द्वारा विहित की हुई होती है।
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