नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।।7.25।।
nāhaṁ prakāśhaḥ sarvasya yoga-māyā-samāvṛitaḥ mūḍho ’yaṁ nābhijānāti loko mām ajam avyayam
।।7.25।। जो मूढ़ मनुष्य मेरेको अज और अविनाशी ठीक तरहसे नहीं जानते (मानते), उन सबके सामने योगमायासे अच्छी तरहसे आवृत हुआ मैं प्रकट नहीं होता।
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