श्री भगवानुवाचमय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।12.2।।
śhrī-bhagavān uvācha mayy āveśhya mano ye māṁ nitya-yuktā upāsate śhraddhayā parayopetās te me yuktatamā matāḥ
।।12.2।।मेरेमें मनको लगाकर नित्य-निरन्तर मेरेमें लगे हुए जो भक्त परम श्रद्धासे युक्त होकर मेरी उपासना करते हैं, वे मेरे मतमें सर्वश्रेष्ठ योगी हैं।
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