यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते।कर्म चैव तदर्थीयं सदित्येवाभिधीयते।।17.27।।
yajñe tapasi dāne cha sthitiḥ sad iti chochyate karma chaiva tad-arthīyaṁ sad ity evābhidhīyate
।।17.27।।यज्ञ, तप और दानरूप क्रियामें जो स्थिति (निष्ठा) है, वह भी 'सत्' -- ऐसे कही जाती है और उस परमात्माके निमित्त किया जानेवाला कर्म भी 'सत्' -- ऐसा ही कहा जाता है।
Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण