तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.68।।
tasmād yasya mahā-bāho nigṛihītāni sarvaśhaḥ indriyāṇīndriyārthebhyas tasya prajñā pratiṣhṭhitā
।।2.68।। इसलिये हे महाबाहो ! जिस मनुष्यकी इन्द्रियाँ इन्द्रियोंके विषयोंसे सर्वथा निगृहीत (वशमें की हुई) हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है।
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