प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।।6.41।।
prāpya puṇya-kṛitāṁ lokān uṣhitvā śhāśhvatīḥ samāḥ śhuchīnāṁ śhrīmatāṁ gehe yoga-bhraṣhṭo’bhijāyate
।।6.41।। वह योगभ्रष्ट पुण्यकर्म करनेवालोंके लोकोंको प्राप्त होकर और वहाँ बहुत वर्षोंतक रहकर फिर यहाँ शुद्ध श्रीमानोंके घरमें जन्म लेता है।
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