सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्।।10.32।।
sargāṇām ādir antaśh cha madhyaṁ chaivāham arjuna adhyātma-vidyā vidyānāṁ vādaḥ pravadatām aham
।।10.32।। हे अर्जुन ! सम्पूर्ण सर्गोंके आदि, मध्य तथा अन्तमें मैं ही हूँ। विद्याओंमें अध्यात्मविद्या और परस्पर शास्त्रार्थ करनेवालोंका(तत्त्व-निर्णयके लिये किया जानेवाला) वाद मैं हूँ।
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