बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।10.35।।
bṛihat-sāma tathā sāmnāṁ gāyatrī chhandasām aham māsānāṁ mārga-śhīrṣho ’ham ṛitūnāṁ kusumākaraḥ
।।10.35।। गायी जानेवाली श्रुतियोंमें बृहत्साम और वैदिक छन्दोंमें गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनोंमें मार्गशीर्ष और छः ऋतुओंमें वसन्त मैं हूँ।
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