अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित् कर्तुमर्हति।।2.17।।
avināśhi tu tadviddhi yena sarvam idaṁ tatam
vināśham avyayasyāsya na kaśhchit kartum arhati
।।2.17।। अविनाशी तो उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण संसार व्याप्त है। इस अविनाशीका विनाश कोई भी नहीं कर सकता।